लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

सूरदास मुस्कराया और बोला, "इसीलिये तो आया हूं।"

''पर.....आप......।''

सूरदास हंस पडा और बोला, "हां, वही जो चक्षु विहीन था।"

"चक्षु विहीन तो नहीं। हां दृष्टि विहीन। आंखें तो आपकी हमारे जैसी ही थीं।"

सूरदास को हवेली के बाहर पहुंचते ही चौकीदार इत्यादि ने पहचाना तो हवेली में धूम मच गयी। घर के सब प्राणी सेठजी से लेकर विश्वम्भर तक द्वार पर आ खड़े हुए। कमला भी थी, परन्तु इस समय वह सबसे पीछे खड़ी थी। उसके मन में चोर था। वह बम्बई में अपना अपमान हुआ देख चुकी थी। उसे अपनी प्रतिस्पर्धा करने वाली युवती भी एक रिक्शा के समीप खड़ी दिखायी दे रही थी।

सूरदास ने क्षमा मांगते हुए कह दिया, "मैं किसी को पहचानता नहीं। केवल स्पर्श से ही समझ पाता हूं।"

"ठीक है। यह देखो, कमला की माता जी हैं।"

सूरदास ने चन्द्रावती के भी चरण स्पर्श करने चाहे तो उसने भी उसे उठा अपने समीप कर, पीठ पर हाथ फेर प्यार दिया।

जब भोजन कर सब आराम करने लगे तो मध्याहनोत्तर तीन बज चुके थे। राम अपने कमरे में जाने लगा तो कमला आयी और कमरे के द्वार के बाहर ही झुक चरण-स्पर्श कर भूमि की ओर देखते हुए खड़ी हो गयी। सूरदास ने बहुत ध्यान से उसकी ओर देखते हुए पूछा, "तो तुम कमला हो?"

''जी।"

''मेरी आंखें अभी किसी को पहचानती नहीं।"

''इस दासी का स्पर्श तो पहचानते हैं?"

''हां, तभी तो कहा है कि तुम कमला हो। देखो देवी, मैं सीधा कैनाडा से आ रहा हूं और आज सायंकाल से पूर्व सेठ जी से कमला को विवाह में माँगने का विचार रूखता हूं।"

''परन्तु अब तो आप देखते हैं कि मैं...।'' वह कहना चाहती थी कि अति कुरूप हूँ, परन्तु कह नहीं सकी। और एक बार काली ऐनक में छुपे नयनों की ओर देख पुन: भूमि की ओर देखने लगी।

सूरदास ने उसे चुप देख कह दिया, "हां, देख रहा हूं कि तुम संसार भर की स्त्रियों में अति सुन्दर स्त्री हो।"

''इधर आओ। अभी माता जी कह रही थीं कि तुम हमारे आने का प्रयोजन जान संकोच और लज्जा से छुपी बैठी हो।''

''अरे, यह क्या? तुम रो क्यों रही हो? आखिर स्त्री हो न।"

सूरदास ने बगल वाले कमरे के बाहर खड़े हो आवाज दे दी, "मां! यह देखो, आ गयी है।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book